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सुख-दु:ख का ताना-बाना / मुकेश निर्विकार
Kavita Kosh से
जीवन के चदरिया
बुनी नहीं जाती है
केवल ‘सुख’ के तागे से
एक तागा ‘दुख’ का भी
काता है कुदरत ने
सुख के साथ-साथ
फूलों की बगिया में
निखालिस नहीं होते फूल
काँटों के दंश भी
छुपाए हैं कुदरत ने,
जीवन के छोर पर
मृत्यु का विधान है
हानियाँ ही करातीं हैं
लाभ का स्पष्ट अहसास है।
रात के अंधेरे में
दिन की उजास है
निराशा की गर्त में
जीवन की आस है
भाग्य के साथ-साथ
दुर्भाग्य भी बदा है
शाश्वत विरोधाभासों में ही
जीवन समाया है।