भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुख की होती है परिभाषा अलग अलग / मृदुला झा
Kavita Kosh से
सबके सपने सब की आशा अलग-अलग।
इंसां हो पशु-पक्षी या फिर और कोई,
सब जीवों की अपनी भाषा अलग-अलग।
कोई चाँद सितारे माँगे कोई प्यार,
हर रिश्ते की है जिज्ञासा अलग-अलग।
सुख संपŸिा औलाद की चाहत हर दिल में,
दुनिया में सबकी अभिलाषा अलग-अलग।
सब की चाहत जाल में फँस जाय कोई,
सबके हाथों में है पासा अलग-अलग।