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सुनते नहीं हैं पाँव की आहट कहीं से हम / गुलाब खंडेलवाल

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सुनते नहीं हैं पाँव की आहट कहीं से हम
बाज़ आये उनके प्यार की ऐसी 'नहीं' से हम

अबकी न ज़िन्दगी को परखने में होगी भूल
फिर से शुरू करेंगे कहानी वहीं से हम

कहते हैं जिसको प्यार, ख़ुमारी थी नींद की
सपना चुराके लाये थे कोई कहीं से हम

जाओ जहाँ भी सुख से रहो, हमको भूलकर
धारा है तेज, लौट रहे हैं यहीं से हम

इतने चुभे हैं प्यार में काँटें गुलाब को
उठती है हूक जब भी झुकाते कहीं से हम