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सुनी के मुरली ध्वनि, चिहुकि उठली धनि / भवप्रीतानन्द ओझा

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झूमर

सुनी के मुरली ध्वनि, चिहुकि उठली धनि
सुतली जे छली घोर नींद में
रे, बाँसी बाजे विपिन में,
कल न पड़त निशि दिन में,
राधा कहे सुन सखी, मिलाह कमल आँखी
अब ने जीयबे श्यामन भीन में
बिनूँ से चीकन काला, अन्तर उपजे जाला
जैसें जाला पानी बिनू मीन में
भवप्रीता कहै हरि! अन्ते दिह पदतरी
ने भेजिहा शमन अधीन में।