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सुनो कबीरा / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
एक ब्रह्म था
बँटा वही अब - राम-रहीम हुआ
सुनो कबीरा
युग की महिमा
लोगों ने सब कुछ है बाँटा
सबने बोया
घर-घर में साही का काँटा
आम लगा था
जो आँगन में - कड़वी नीम हुआ
सुनो कबीरा
वैष्णव जन भी
पीर पराई कैसे जानें
नया पाठ है
दर्द सिर्फ अपने ही मानें
नया ज़माना
शहज़ादा खुद शेख सलीम हुआ
सुनो कबीरा
जला रहे घर
सभी लिये हैं हाथ लुकाठी
न्याय पुराना
भैंस उसी की जिसकी लाठी
जो सबसे
बीमार शहर का - वही हकीम हुआ
सुनो कबीरा