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सुनो साँवरे दूर जाना नहीं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सुनो साँवरे दूर जाना नहीं।
कभी भक्त जन को भुलाना नहीं।।
सदा अर्थमय श्रम भरी जिंदगी
कहीं आलसी का ठिकाना नहीं।।
पुकारे सभा में द्रुपद की सुता
किसी और को उसने' जाना नहीं।।
न तूफ़ान आँधी न तो वात है
जला दीप है जो बुझाना नहीं।।
किनारे लगाता है नैया वही
किसी दूसरे को बुलाना नहीं।।
बनेगा सहारा विपद में वही
सिवा श्याम दुखड़ा सुनाना नहीं।।
छिपा कर रखो अश्रु को आँख में
इसे व्यर्थ यों ही बहाना नहीं।।
उड़ाने लगेगा जमाना हँसी
कभी कष्ट अपना बताना नहीं।।
चलो सत्य पथ पर बढ़ा पाँव को
असद के कभी पास जाना नहीं।।