भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुबह-सुबह / मरीना स्विताएवा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह-सुबह अधिकतम धीमी हॊती है ख़ून की गति ।
सुबह-सुबह अधिकतम स्पष्ट होती है चुप्पी ।
मन लेता है तलाक निष्क्रिय हाड़-माँस से ।
और पंछी लेता है तलाक हड्डीयों के पिंजरे से ।

आँखें देखती हैं- अदृश्य दूरियाँ,
हृदय देखता है- अदृश्य सम्बन्ध...
कान गाते हैं- अश्रव्य प्रार्थनाएँ...
क्षत-विक्षत ईगर के लिए रोती है दिव

अन्तिम पंक्ति= रूसी साहित्य की सबसे पुरातन कृति "ईगर सैन्य-अभियान गाथा" में वर्णित एक घटना की चर्चा है यहाँ।

रचनाकाल : 17 मार्च 1922

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह