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सुबह शाम के सहजन / देवेन्द्र कुमार

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मैंने तो लिखे नहीं
लोगों ने दिए
गीत बन्द किए

भागते-ठहरते
वन
सुबह शाम के
सहजन
चलने को हुए
नहीं, राह रोकिए !

चढ़ी
धूप की छाया
पेड़ों से कहलाया
छोड़िए उन्हें कल पर
इनसे मिलिए !