Last modified on 23 अप्रैल 2017, at 19:32

सुबह शाम के सहजन / देवेन्द्र कुमार

मैंने तो लिखे नहीं
लोगों ने दिए
गीत बन्द किए

भागते-ठहरते
वन
सुबह शाम के
सहजन
चलने को हुए
नहीं, राह रोकिए !

चढ़ी
धूप की छाया
पेड़ों से कहलाया
छोड़िए उन्हें कल पर
इनसे मिलिए !