मैंने तो लिखे नहीं
लोगों ने दिए
गीत बन्द किए
भागते-ठहरते
वन
सुबह शाम के
सहजन
चलने को हुए
नहीं, राह रोकिए !
चढ़ी
धूप की छाया
पेड़ों से कहलाया
छोड़िए उन्हें कल पर
इनसे मिलिए !
मैंने तो लिखे नहीं
लोगों ने दिए
गीत बन्द किए
भागते-ठहरते
वन
सुबह शाम के
सहजन
चलने को हुए
नहीं, राह रोकिए !
चढ़ी
धूप की छाया
पेड़ों से कहलाया
छोड़िए उन्हें कल पर
इनसे मिलिए !