भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूरज ने हाथों से खींचा / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
सूरज ने हाथों से खींचा
जिगद गया दूबिया ग़लीचा !
गरमाया आसमान
काँपने लगा
धरती की स्वेद-गन्ध
भाँपने लगा,
ऊँचा भी और हुआ नीचा !
धुँधआती आँख / आँख
टोहती रही
आस बँधी प्यास / बाट
जोहती रही,
उग आया रेत का बगीचा !
29 जून 1974