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सृजन के बीज / रमेश रंजक
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छोड़ रे !
क़द छोड़, पीछे छो
पत्थरों की पसलियों को तोड़
ओ ! सृजन के बीज आँखें खोल
पतझर सिरचढ़ा है
उठ ! झटक दे
सूर्य का पारा
हवा का गुस्सा-गिला सारा
मौसम चिड़चिड़ा है
उठ ! लहर !!
ढक कोढ़ धरती का
कर समय के भाल का टका
कहाँ तल में पड़ा है
ओ ! सृजन के बीज
क़द को छोड़
पतझर सिरचढ़ा है