भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सेंटिनिलिस से छीन नहीं सकते मौलिकता / लक्ष्मीकान्त मुकुल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तमाम भौगोलिक खोजों, सभ्यता कि अनगिन ऊंचाइयाँ छूने के बावजूद
तुम्हारे लिए अनजानी, अनदेखी की रह गई हमारी दुनिया
कोई कोलंबस, वास्कोडिगामा, मार्कोपोलो
हमें बना नहीं पाया अपना गुलाम
न खरीद पाया हमारी मौलिकता, हमारी जैविकता

तुम्हारे सभ्य समाज की नजरों में खटकता
गूलर का फूल बना सेंटिनिलिस हूँ मैं
साठ हजार सालों से नीग्रोवंशी बसे हुए बंगाल की खाड़ी के साठ वर्ग किलोमीटर फैले एकल द्वीप में जिसे तुम कहते हो अपनी भाषा में आदमखोर-खूंखार
आत्मरक्षा में उठाए धनुष-बाण
संधान करते तीरों से दुश्मनों की
अपनी अनबिकी दुनिया के सजग पहरेदार हैं हम

भले ही हमें न आती हो खेती करने की कला
पशुओं को पालने के तरीके
न ही आग पैदा करने के गुण
तो भी हम मस्त रहते हैं अपनी आत्म निर्भरता से खाते हुए फल, कंदमूल, चूसते हुए शहद
सूअर, कछुआ, मछलियाँ मारकर कच्चे चबाते हुए हमारी जीभ के स्वाद से वंचित है तुम्हारे उत्पादित नमक, शक्कर, तेल-मसले
हम बनाते हैं तीर, भाला, टोकरियाँ, झोपड़ियाँ
हमें किसी राजा-रानी की प्रथा नहीं
हमने सीखा है हुनरमंदी को देना सम्मान
जैसे विशाल उठती लहरें करती हैं समुद्र को सलाम शिखर से उतरते झरने झर-झर करते हुए पर्वतों को करते हैं अलविदा
वैसे ही मृत व्यक्ति की झोपड़ी को त्याग कर
हम करते हैं अपने पुरखों को सादर नमन

तुम जनगणना करके क्यों गिनना चाहते हो हमारी तादाद, कोई जान एलिन चाउ
हमें क्यों कहता है _"शैतान का आखिरी गढ़"
क्यों पढ़ाना चाहता है हमें ईसाईयत के पाठ
हम नंगे आदिम लक्षणों वाले दुनिया के दुर्लभ प्राणी दुनिया हमें किस लिए बनाना चाहती है
पूंजीवादी बाज़ार का अंग

तुम क्यों छीनना चाहते हो हमारी स्वतंत्रता
संसद, कानून, न्यायपालिका के अपने ढोंग को क्यों थोपना चाहते हो हमारी परंपरागत जीवन शैली पर

मालूम है मुझे जारवा जनजाति की तरह
हमें भी बनाना चाहते हो उपहास के पात्र
निकोबारियों की तरह मनोरंजन के साधन
चरियार, कारो, ताबो, जुआरी समुदायों की तरह
हमें भी कर देना चाहते हो लुप्त प्राय
अपने सुग्गापोस बीमारियों को हमारे द्वीप में प्रसार कर हमारी वंश वृक्षों को जड़ों समेत उखाड़ फेंकना चाहते हो सागर के तलातल में

हम समुद्र के जीव
बहुत ही होते हैं कठ करेजी
हमारी भाषा में मृदुलता के साथ फूटती हैं बेचैनियाँ बचाने के लिए द्वीप की हरीतिमा
दिकुओं को खदेड़ने के लिए हथियार
सुनामी की उत्ताल तरंगे भी छू नहीं सकती हमें।