भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सै सात साल की यारी रै / विरेन सांवङिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सै सात साल की यारी रै
मनै डिग्री बरगा प्यार तेरा
मै रांझा बणकै जी लूगां
कर जिंदगी भर इंतजार तेरा

सै खेत क्यार का काम मेरा
मै उलझा रहूँ जमीदारे म्ह
तू तारे गिण गिण थक जा सै
मेरी देखै बाट चुबारे म्ह
ना रात रात भर जाग्या कर
नू करकै नै इंतजार मेरा

ना मै कृष्ण काला रै
ना राधा तू बरसाणे की
ना बात बात पै रुशया कर
मनै फुर्सत नहीं मणाणे की
मै तेरा हूँ बस तेरा हूँ
तू कर तो सही एतबार मेरा

धनपत सिंह रै लिखै रागनी
देशी beat हो गाणे की
मैं बण जाऊँ रै चमन तेरा
तू लिलो बण हरियाणे की
जै कहै दे तो मै बणवा दूं
रै नौटंकी सा हार तेरा

चांद तारे रै ल्या दूंगा मै
इसे झूठे वादे ना करता
पर तेरे खातर मर जाऊं
मन्नै तेरे बिन भी ना सरता
तू मिल जाईए चाहे ना मिलीए
पर सै यो सच्चा प्यार मेरा