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स्मृतियाँ, गुस्सा करतीं हैं / अमन मुसाफ़िर

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स्मृतियाँ
गुस्सा करतीं हैं
शोर मचाती चिल्लाती हैं
इनको अब तुम ले जाओ ।

यह सच है : अन्तर्मन मेरा कक्ष बना है,प्रश्नों का
यह सच है : कविता का पहला छंद बना है प्रश्नों का
यह सच है : जीवन के अनुभव साँसों में ही सिमट गए
यह सच है : फिर हृदय पटल पर चित्र बना है प्रश्नों का
संग तुम्हारे मौन रहेंगे समझेंगे मन की पीड़ा
इन प्रश्नों को तुम ले जाओ ।

प्रेम पंथ पर सँग-सँग अब ना चल पाएँगे  : यह सच है
नदी,झील,झाड़ी,झरने सब रह जाएँगे : यह सच है
और छलकते अश्रु कहानी कह जाएँगे : यह सच है
हम दोनों इस तीव्र ज्वार में बह जाएँगे : यह सच है
शब्द-शब्द चुभता है इसका अर्थहीन अब लगता है
पहला खत तुम ले जाओ ।