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स्याम! अब मत तरसा‌ओ जी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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स्याम! अब मत तरसा‌ओ जी।
मन-मोहन ’नंद-लाल’ दया कर दरस दिखा‌ओजी॥
व्याकुल आज आपकी राधा माधव आ‌ओजी।
तब दरसन लगि तृषित दृगन कौ सुधा पि‌आ‌ओजी॥
तुम बिन प्रान रहैं अब नाहीं धाय बचा‌ओजी।
प्रानाधार ! प्रान चह निकसन, बेगि सिधा‌ओजी॥
राधा कहत, ग‌ए राधा के, पुनि पछिता‌ओजी।
राधा बिना स्याम नहिं ’राधा-कृष्ण’ कुहा‌ओजी॥