भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्यामघन दामिनि प्रगट भ‌ई / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 स्यामघन दामिनि प्रगट भ‌ई॥

 रस-नृप रसिक-रिझावनि पावनिरया सुरसम‌ई।
 अंग-‌अंग अतुलित श्री-शोभा कोटिक रति लज‌ई॥

 सकल-विस्व-‌आकर्षक-अकर्षिनि छबि सौंदर्य छ‌ई।
 नित्य पराजित रहत सहज जो अखिल जगत बिज‌ई॥

 परम सती प्रिय-सुख-कामिनि नित निज सुख बिसरि ग‌ई।
 रूप-रासि गुन-रासि अमित सुचि प्रगटत न‌ई-न‌ई॥