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स्याम मोहिं तुम बिन कछु न सुहाय / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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स्याम मोहिं तुम बिन कछु न सुहाय।
जब तें तुम तजि ब्रज गये मथुरा, हिय उथल्यौई आवै॥
बिरह-बिथा सगरे तनु यापी, तनिक न चैन लखावै।
कल नहिं परत निमिष इक मोही, मन-समुद्र लहरावै॥
नँद-घर सूनौ, मधुबन सूनौ, सूनी कुंज जनावै।
गोठ, बिपिन, जमुना-तट सूनौ हिय सूनौ, बिलखावै॥
अति विहवल वृषभानु-नंदिनी, नैननि नीर बहावै।
सकुच बिहाइ पुकारि कहति सो-’स्याम मिलै सुख पावै’॥