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स्वर्ण-पिंजर-स्थित मगन मन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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स्वर्णपिंजरस्थित मगन मन सुक सुनावत बैन॥
नीलमनि-सौंदर्य-सुषमा कोटि मर्दन-मैन॥
मधुरतम मनहरन लीला सुनि चकित चित चैन।
लगीं निरखन छबि परम सुख रहे अपलक नैन॥
मुख-कमल कर-पद अचंचल अंग आनँद-ऐन।
मुक्त चंचु सु-मौन मुख, लखि लाडिली सुख-दैन॥