भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हंसते हुए हुरूफ़ में जिस को अदा करूँ / 'शहपर' रसूल
Kavita Kosh से
हंसते हुए हुरूफ़ में जिस को अदा करूँ
बच्चों से किस जहाँ की कहानी कहा करूँ
या रब अज़ाब-ए-हर्फ़-ओ-तख़य्युल से दे नजात
ग़ज़लें कहा करूं न मज़ामीं लिखा करूँ
क़दमों में किस के डाल दूं ये नाम ये नसब
कुछ तो बताओ किस का क़सीदा पढ़ाक करूँ
अब तक तो अपने आप से पीछा न छुट सका
मुमकिन है कल से आप के हक़ में दुआ करूँ
कितनी नई ज़बान हो कैसा नया सुख़न
इस अहद को तो देख लूँ ‘ग़ालिब’ को क्या करूँ
‘शहपर’ मिरी हदों का तअय्युन करे कोई
आँखों से बह रहूँ कि रगों में फिरा करूँ