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हद से गर बढ़ जाएंगे तो क्या करोगे / ध्रुव गुप्त

हद से गर बढ़ जाएंगे तो क्या करोगे
चांद पर अड़ जाएंगे तो क्या करोगे

इस क़दर आवारगी में दिल लगा है
हम कभी घर जाएंगे तो क्या करोगे

मत हमें समझाओ रिश्तों की सियासत
शर्म से गड़ जाएंगे तो क्या करोगे

कितनी टूटी ख़्वाहिशों से दिल भरा है
ख़ुद से ही लड़ जाएंगे तो क्या करोगे

इनसे जी बहलाने की आदत पड़ी है
जख्म सब भर जाएंगे तो क्या करोगे

बेसबब यह ज़िन्दगी गुज़री ख़ुदाया
हम अगर मर जाएंगे तो क्या करोगे