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हमने आज ख़रीदा कल के बदले में / देवेन्द्र आर्य
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हमने आज ख़रीदा कल के बदले में ।
जैसे कोका-कोला जल के बदले में ।
रास ना आया भूख का देसीपन हमको,
प्लेटें चाट रहे पत्तल के बदले में ।
जब भी कुछ मिलने की बारी आई तो,
दिल्ली चुनी गई सम्भल के बदले में ।
भरा-पूरा-सा एक अकेलापन माँगे,
आज की कविता चहल-पहल के बदले में ।
मैंने अपने को फल तक सीमित रक्खा,
तुमने पेड़ गिने हैं फल के बदले में ।
बाक़ी सब तो पहलेवाला है केवल,
राम बहल हैं राम नवल के बदले में ।
आने वाली पीढ़ी करनेवाली है,
धरती का सौदा, मंगल के बदले में ।