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हमरोॅ कहलोॅ तोहें मानोॅ / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
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हमरोॅ कहलोॅ तोहें मानोॅ
कतला नै, बोचोॅ केॅ छानोॅ।
दुक्खोॅ मेॅ धीरज नै खोइयोॅ
रिषि-मुनि केरोॅ बात पुरानोॅ।
टिपटिपिया सम्मुख के टिकतै
ई मुगदर, ई लाठी-बानोॅ?
बरसाती मच्छर के भनभन
रात उतरलै चद्दर तानोॅ।
कहूँ लुटाबेॅ पारेॅ कोय्यो
सब जग्घे ठो लगै विरानोॅ।
सारस्वते तेॅ दुख के साथी
अपनोॅ लोगोॅ केॅ पहचानोॅ।