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हमर पसेना के रांगल / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
हर दिन के उजियाला से
हर रात मचलइत हो भयवा
हर सुबह के ललकी जोती से
हर साँझ बदलतइ हो भयवा
हमर पसेना के राँगल
धरती के चप्पा-चप्पा हइ
ओकरे पर सब धैल फुटानी
चल रहलइ लारा-लप्पा
भोथरइतइ गन धान जुलुम के
अब न´ चलतइ हो भयवा
धरम धुरंधर के नाटक सब
देखलक खूब देखइला हे
तरहत्थी के रेखा छू-छू
सब के खूब भरमइला हे
आग धधकइलो जरल पेट के
सभे उगलइतइ हो भयवा
अमर शहीदन के लेहू से
धरती देखऽ पटल हकइ
जालिम से जूझइ ले सगरो
ताल ठोक के डटल हकइ
लय सुर मिलल मिलावत ई सब
आग धधकतइ हो भयवा