अशआर
हमारे भाग में सहबा<ref>शराब</ref> बदा नहीं न सही
तेरे कमाल से कूज़े में कायनात<ref>कुलिया में ब्रह्माण्ड</ref> तो हो ।
दिलों के हौसले इससे बुलन्द होते हैं
अँधेरा घर है मगर रौशनी की बात तो हो ।
अमलकदा<ref>कर्मभूमि</ref> है ये चुप्पी भली नहीं लगती
बराए-नाम सही कोई वारदात तो हो ।
तेरे हुज़ूर में कहने को कुछ तो है लेकिन
तेरे निज़ाम में क़तरे की कुछ बिसात तो हो ।
तुम्हारा सोज़ अब इस खेल से भी ऊब चला
है मुंतज़िर कि कोई शह लगे कि मात तो हो ।
शब्दार्थ
<references/>