भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम्मर वसन्त नै ऐलै / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
ऐलै फागुन माह हम्मर बसन्त नै ऐलै
रही-रही टीसै मोंन किये घर कंत नै ऐलै
दृग झरी बनल अखाढ़ बाढ़ दुख के नियरैलै
नाचैत मन के मोर गोर के देख झमैलै
प्रीत के पटल अकाल हाल केकरा बतलैयै
ऐलै हन रितुराज केना पिय बिन पतिऐयै
पवन भेल बटमार ऊ रहि-रहि आँचर खीचै
कोइलिया बे-पीर विरह में फाग उलीचै
उचरे लागल काग संदेशा पी के लैलक
गम-गम गमकल बाग, आम महुआ महकैलक
भय कोयल से काग समदिया जे साजन के
तब बुझलौं रितुराज मिटल अंदेशा मन के