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हम अपनी उदासी का असर देख रहे हैं / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
हम अपनी उदासी का असर देख रहे हैं
ख़ुद आयें हैं चलकर वे इधर, देख रहे हैं
हम भी लगी जो आग उधर, देख रहे हैं
यों तो न देखना था, मगर, देख रहे हैं
अब है कहाँ वो जोश कि बाँहों में बाँध लें!
आ-आके जा रही है लहर, देख रहे हैं
ऐसे तो देखते उन्हें देखा न था कभी
आँखों में बेबसी का ज़हर देख रहे हैं
आया न काम कुछ यहाँ लहरों से जूझना
ख़ुद नाव बन गयी है भँवर, देख रहे हैं
शायद किसीमें प्यार की धड़कन भी सुन पड़े
हर फूल में एक शोख़ नज़र देख रहे हैं
भाते न थे गुलाब उन्हें फूटी आँख भी
मौसम का कुछ हुआ है असर, देख रहे हैं