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हम क्या थे / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’
Kavita Kosh से
हम क्या थे, क्या हुए
और क्या होंगे जाने राम ही!
काम नहीं है कुछ करने को
बैठ करें आराम ही!
बाज़ारों में घूम रही हैं,
युग-पुरुषों की टोलियाँ,
भूख खा रही मार,
तृप्ति की भरी जा रही झोलियाँ,
जागृत दिन का अर्थ रह गया,
कुण्ठाग्रस्त प्रणाम ही!
काम नहीं है कुछ करने को
बैठ करें आराम ही!
सड़कों पर जुलूस,
घर-द्वारे तैर रही वीरानियाँ,
सर्पीले नारों ने डस ली,
सिन्दूरी तन्हाइयाँ,
बैठे-बैठे जी घबराए,
तो टकराएं जाम ही!
काम नहीं है कुछ करने को
बैठ करें आराम ही!
देवालय में भाषण होते,
प्रदर्शनों में आरती,
खण्डित जनमत बन बैठा है,
जान-जीवन का सारथी,
पागल कर देगी चेतनता,
बेहतर हम खैय्याम ही!
काम नहीं है कुछ करने को
बैठ करें आराम ही!