हम तपस्वी हैं अरण्यक / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
हम न पिघलें वेदना से व्यर्थ रोकर क्या करोगे?
हम तपस्वी हैं अरण्यक साथ होकर क्या करोगे?
हम उजाले मरघटों के माहुरी जलपान करते,
दक्ष जैसों की सभा में हम सदा अपमान सहते,
पुष्टता तनु की, सुआभा पर न जाओ बालिके तुम
राख ओढ़े यामिनी भर हम सदा शमसान रहते,
व्यर्थ मन में कामना के बीज बोकर क्या करोगे?
हम तपस्वी हैं अरण्यक साथ होकर क्या करोगे?
जो जगाता कामना निज, वह सुनिश्चित भष्म होता,
भावनाएँ त्याग कर निज स्पर्श पाकर अश्म होता,
हम दुर्धुर्षी, भावना की सूक्ष्मता न जानते हैं
हम अजित साबर सने को जीतना तिलस्म होता,
मत बढ़ा इस ओर पग लग जाय ठोकर क्या करोगे?
हम तपस्वी हैं अरण्यक साथ होकर क्या करोगे?
दूर हमसे है जगत नित और हम एकान्तवासी,
बीहड़ों की सेज अपनी मरघटी भू नित्य काशी,
हम गुडाकेशी दृगों की नींद से है शत्रुता निज
वैर हमको है विषय से हैं नहीं हम अमृताशी,
सुन अरे! नि: संग रत हम, व्यर्थ ढोकर क्या करोगे?
हम तपस्वी हैं अरण्यक साथ होकर क्या करोगे?