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हम तो... / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
वैसे ग्रह, उपग्रह, सब, सूर्य के सहारे हैं
लेकिन—हम तो पुच्छल तारे हैं
क्या कहें ?
किसी बड़े लेख, बड़े नाम के तले
जीते हैं विज्ञापन ज़िन्दगी
ब्लेड से कतरते हैं जिन्हें मनचले
कुर्सी का अमृत जो पीते हैं—जीते हैं,
'हम तो विषपायी हैं', हारे हैं
क्या कहें ?
हर बौने मंच को पहाड़ जान कर
खड़े रहे लिए हुए आरती
हम छोटे बच्चे-सा कहा मान कर
वे अंधे कन्धों की भीड़ के शिकारे हैं
हम तो इस भीड़ के किनारे हैं
क्या कहें ?