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हम तो जाते अपने गाँव, अपनी राम राम राम / शैलेन्द्र

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मुबारक देने आए थे, मुबारक देके जाते हैं
मिला है बहुत कुछ, सीने में जो हम लेके जाते हैं

हम तो जाते अपने गाम, अपनी राम-राम-राम
अपनी राम-राम-राम, सबको राम-राम-राम
हम तो जाते अपने गाम, अपनी राम-राम-राम
सबको राम-राम-राम

कभी जो कह ना पाए बात, वो होंठों पे अब आई
अदालत उठ चुकी है, अब करेगा कौन सुनवाई
हम तो जाते अपने गाम …

हुई हो भूल कोई तो, उसे दिल से भुला देना
कोई दीवाना था, बातों पे उसकी ध्यान क्या देना
हम तो जाते अपने गाम …

1967