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हम नया सूरज उगाएँ / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

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हाँ, समय अब आ गया है
   हम नया सूरज उगाएँ
 
मन्त्र बीजें नये युग का
क्योंकि पिछली प्रार्थनाएँ हुईं बासी
जिन्हें पूजा - देव वे सब
हुए कपटी औ' विलासी
 
आओ, मिलकर
नया मन्दिर ढाई आखर का बनाएँ
 
भाई, देखें हर तरफ हैं
गुफा-युग के घुप अँधेरे
लोग इतने बावरे हैं
इन्हें ही कहते सबेरे
 
चलो हम-तुम
नेह-भीगी बातियाँ घर-घर जलाएँ
 
धूप के पिछले युगों की
बात करना है निरर्थक
जो मसीहे जा चुके हैं
तुम बुलाते उन्हें नाहक
 
करें कोशिश
हम स्वयं ही बनें नवयुग की दुआएँ