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हम नहीं तो हम सा कोई दूसरा चलता रहे / संजय चतुर्वेदी
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सबसे अच्छी है तरक़्क़ी सिलसिला चलता रहे
जो तरक़्क़ी के लिए हो वो ख़ुदा चलता रहे
मंज़िलों के पार की दुनिया में होंगी मंज़िलें
मंज़िलें आ जाएँ तो भी देखना चलता रहे
दिल को हाथों में ज़हन को पाँव में रक्खे हुए
हम नहीं तो हम सा कोई दूसरा चलता रहे
किस ख़ला में तैर के इन्सान आया है यहाँ
ग़ैब में तारों से आगे आसरा चलता रहे
(1992)