भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम ने जब भी अँधेरों से रिश्ता किया / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
हम ने जब भी अंधेरों से रिश्ता किया
जुगनुओं को सितारों से समझा किया
दो घड़ी चैन की ग़र कहीं मिल गयी
बस वहीं बैठ कर थोड़ा सुस्ता लिया
खुद को जिंदा रखा हम ने हर हाल में
रब ने जो भी दिया सर झुकाया लिया
हर वरक पर रहा नाम उस का लिखा
जब भी देखा उसे हम ने सिजदा किया
इतना आसां नहीं है उसे जानना
वो तो खुद से हमेशा है भागा किया
तुझ से कोई कसम ना निभायी गयी
था जमाने से क्यों तू ने वादा किया
डोलियों की हैं लगने लगीं बोलियाँ
इसलिये मौत से उस ने रिश्ता किया