हम सफ़र के वास्ते पूरी तरह तैयार थे
दूर तक फैले हुए लेकिन दर-ओ-दीवार थे
लोग कहते हैं उसे परियाँ उठाकर ले गयीं
वो मेरा हमज़ाद जिसके खेल भी दुश्वार थे
धुंध मे लिपटी लकीरों से बहुत डरते थे हम
ग़ौर से देखा तो सारे रास्ते हमवार थे
बेहिसी ने सारे रोशन नक़्श धुँधले कर दिये
वरना क्या-क्या मसअले दिल के लिये आज़ार थे
एक मुद्दत हो गयी वो ख़्वाब भी देखे नहीं
अजनबी-सी आहटों के जिनमें कुछ आसार थे