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हम हियई मजदूर-किसान / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
कसके कमर हम उतरलूं समर में
कि जीत लेबइ जंगे मइदान
भइया हो
हिअउ मजदूर-किसान
हलवा अउ पलवा संग धरबइ रइफलवा कि
बनतइ अरउआ तरवार सोभतइ गियरिया में
गोलिया के मलवा कि घर-घर उतरइ बिहान
भइया हो हम हियई मजदूर-किसान
झूठ साँच कहि-कहि
बड़ दिन धुरिअइलें तों
अबरो झिलोर देबउ कान
अनगिनती बच्छर से
सहलूं विपतिया कि
टूटि गेलउ हम्मर धियान
भइया हो हम हियई मजदूर-किसान
टुटलो मड़इया में नेस-नेस सलइया तों
जारि देले जी के अरमान मुड़िया उठइलूं जब
माँगे इंसफवा कि गोलिया के बनलूं निशान
भइया हो हम हियई मजदूर-किसान
अगिया लगइबउ तोर कोट कचहरिया में
सड़ल कनुनमा के जार
पइसा पर बिकऽ हउ तोर सब कनुनमा
कि पतुरियो से बिगड़ल ईमान।