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हरियाएगा हर बूटा / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

अचरज हुआ
घने जंगल में पानी का सोता फूटा
 
हम हताश थे
खबर यही थी
धरती का जल है सूखा
था अगियावेताल पुराना
कई पीढ़ियों से भूखा
 
गड़ा हुआ था
धरती के सीने में जादू का खूँटा
 
आग लगी जंगल में जब
बरसों पहले
थी नदी यहीं
पहले बनती कई हिस्सों में
बिला गई फिर वही कहीं
 
बचा बूँद भर
पानी था जो- उसे सभी ने है लूटा
 
राख हुआ -
वन दहका बरसों
आसमान भी सूख गया
सोता छिपा रहा धरती में
यही अचंभा हुआ नया
 
निश्चित फिर से
हरियाएगा जंगल का अब हर बूटा