हरिके नामको आलस क्यों करत है रे काल फिरत सर साँधैं।
हीरा बहुत जवाहर संचे, कहा भयो हस्ती दर बाँधैं॥
बेर कुबेर कछू नहिं जानत, चढ़ो फिरत है काँधैं।
कहि हरिदास कछू न चलत जब, आवत अंत की आँधैं॥
हरिके नामको आलस क्यों करत है रे काल फिरत सर साँधैं।
हीरा बहुत जवाहर संचे, कहा भयो हस्ती दर बाँधैं॥
बेर कुबेर कछू नहिं जानत, चढ़ो फिरत है काँधैं।
कहि हरिदास कछू न चलत जब, आवत अंत की आँधैं॥