हर शख्स की आँखों में दहशत थमी-थमी है
पर मौत गमज़दा है की उसमें कहीं कमी है।
‘वो अमन तलाशता है, पूछता है खैरियत’
गुजरी हुई सदी का भटका-सा आदमी है।
पत्थर के फूल जबसे चढ़ने लगे हैं सर पर
पठार के देवता के आँखों में भी नमी है।
जन्नत उतारने में मशगूल हैं नावाकिफ
दोज़ख के हाथों अपनी गिरवी पड़ी जमीन है।
तकदीरे कौम लिखना है हाथ आज जिसके
तकदीर का मारा वह हर चेहरा मातमी है ।
मौसम में बदलना अब किस्मत नहीं गुलशन की
मक्कार बागवां की हर चाल मौसमी है।
पत्थर के फूलल ‘ईश्वर’ बदले न आग में अब
मख़लूक़ तुम्हारी ये अब फिक्र लाज़मी है ।