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हर समय द्वन्द्व चलते रहते हैं / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
हर समय द्वन्द्व चलते रहते हैं
मन के मौसम बदलते रहते हैं
फूल खिलते हैं जिनकी डालों पर
बस वे ही पेड़ फलते रहते हैं
हम कई बार जानते भी नहीं
हम भी लोगों को खलते रहते हैं
जिनको ठोकर से डर नहीं लगता
वे ही गिर कर सम्हलते रहते हैं
शीशमहलों में चलने वालों के
पैर अक्सर फिसलते रहते हैं
सुख से जीने की चाह में हम सब
उम्र भर, खुद को छलते रहते हैं
ऐसे कम ही दिये मिले मुझको
वो जो आँधी में जलते रहते हैं