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हर सिम्त तमाशा ही ज़माने में रह गया / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
हर सिम्त तमाशा ही ज़माने में रह गया
हर कोई अपना आप गिनाने में रह गया
इल्ज़ाम सिर्फ़ मुझपे लगाता रहा है वो
मेरा ही नाम सारे ज़माने में रह गया ?
दुनिया में नफरतों के अलावा है और कुछ
क्या बस ख़लूस मेरे घराने में रह गया ?
कब की निकाल दी है ये दुनिया तेरे लिए
इक तेरा नाम दिल के ख़ज़ाने में रह गया
हासिल हुई थी, उसने मगर खो दिया मुझे
फिर उसके बाद वो मुझे पाने में रह गया
खिड़की पे बैठी सोच रही थी वो कुछ कहे
गाड़ी चली वो हाथ हिलाने में रह गया
मंज़िल पे गामज़न थे ये मेरे क़दम सिया
वो रस्ते से मुझको हटाने में रह गया