भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर हिटलर / नाथ कवि
Kavita Kosh से
हर पालत हर सृजत हैं, हर कर्त्ता संहार।
या कलियुग के बीच में, हर हिटलर अवतार॥
हर हिटलर अवतार, युगन ऐसी चल आई।
जब अवनी पै बढ़ें पाप प्रगटे तहाँ जाई॥
जलचर थलचर यान सो करत अनौखी मार है।
जो जीते या समर को तौ निश्चय अवतार है॥