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हवा-सा, धूप-सा, यादों के झोंके-सा उधर जाएं / ध्रुव गुप्त

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हवा-सा, धूप-सा, यादों के झोंके-सा उधर जाएं
कभी छूके तुझे चुपचाप मौसम-सा गुज़र जाएं

मेरी बीती कहानी इस अदा से मत सुना मुझको
कही मैं ख़ुद पे ना हंस दूं, तेरी आंखें न भर जाएं

कोई कपड़े, कोई ताक़त, कोई दौलत टटोलेगा
फ़रिश्ते भी अगर एक रोज़ धरती पे उतर जाएं

बहुत तरतीब से रहना कभी आया नहीं हमको
हमारे पास रख दो आईना, हम भी संवर जाएं

अभी दिल में हज़ारों ख़्वाहिशें उतरी हैं चुपके से
हैं पलकें मुन्तज़िर, दो बूंद आंखों से उतर जाएं

बहुत थोड़ा सही इस प्यार को सीने में रख लेना
यहां से लौट जा, हम भी यहां से अपने घर जाएं