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हवा-2 / केशव शरण
Kavita Kosh से
यह दृष्टियों के आर-पार बह रही है
इसमें मज़े लूट रहे हैं रोयें
इसमें गान के स्वर मचल रहे हैं
इसमें उड़ रहा है फूलों का पराग
इसमें गुदगुदा उठे हैं प्राण