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हवा से, पेड़ से या आदमी से / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
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हवा से पेड़ से या आदमी से
कई बातें न कह पाए किसी से

वो जिसने ‘उर्वशी’ देखी नहीं है
वो तुलना कर रहा है ‘उर्वशी’ से

मैं अक्सर इस विषय में सोचता हूँ-
कमल जन्मा है कैसे गन्दगी से?

वो दुश्मन था मुझे तब डर नहीं था
मैं अब डरता हूँ उसकी दोस्ती से

नदी भी पार कर पाया नहीं है
वो केवल अपने मिश्चय की कमी से

हुआ है झील के पानी से कम्पन
तुम्हारी उस ज़रा-सी कंकरी से

महायुद्धों के ख़तरे कब टलेंगे
चलो,मैं पूछता हूँ आप ही से !