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हाथी / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
टुकढुम-टुकढुम हाथी राम
तोरोॅ सवारी बिना लगाम
सूँड़ लटकलोॅ अजगर रं
चमड़ोॅ तोरोॅ पत्थर रं
दाँत दुधे रं चम-चम-चम
खाना मोॅन भरी, नै कम
पर टुकनी रं आँखे जाम
टुकढुम-टुकढुम हाथी राम ।
पेट छेकौं या छेकौं पहाड़
गोड़ छेकौं या गाछे ताड़
लगौं डमोलोॅ तोरोॅ कान
तोरोॅ मालिक बस पिलवान
सब बुतरू के तोरा सलाम
टुकढुम-टुकढुम हाथी राम ।