हाथ पकड़ कर रख नहीं पाया तुझे मैं अपने साथ
नमकीन-कोमल होंठों से तेरे किया विश्वासघात
अक्रोपोल में बन्द मुझे अब सुबह का इन्तज़ार
गन्धाते इन काष्ठ-किलों से नफ़रत मुझे अपार
रात अन्धेरी, चढ़ा रहे वे अपने घोड़ों पर साज
करेंगे हमला आज रात वे, अख़ेई के जाँबाज़
रक्तपात यह बन्द नहीं होगा, जारी है षड्यन्त्र
नामलेवा तक कोई नहीं बचेगा, नया होगा तन्त्र
कैसे मैंने सोच लिया यह -- एक दिन लौटेगा तू ?
मैं अलग हुआ क्यों समय से पहले, कैसा हूँ बुद्धू ?
अभी दूर न हुआ अन्धेरा, मुर्गा अभी बोला नहीं
चूल्हा अभी जला नहीं है, दूध अभी खौला नहीं
रात प्राचीरों पर अश्रु-सी, उभर आईं झीनी बूँदें
औ’ नगर महसूस करे, कोई काठ-पसलियों को खूँदे
बह निकला उन सीढ़ियों पे रक्त, बाढ़-सा धारों-धार
औ’ जाँबाज़ों ने देखी फिर, वह मोहक छवि तीन बार
कहाँ है ट्रॉय ? कहाँ नृपति ? कहाँ है कन्या-घर ?
बया घोंसले-सा प्रियाम का नष्ट हो जाएगा विवर
हम पर जारी है तीरों की वर्षा भयावह लगातार
औ’ शंकु-सी उगे धरती पर, बाणों की रौद्र कतार
बचे सितारों को बुझा रहे अब, तीखे तीरों के वार
अबाबील-सी सुबह सलेटी, झलके खिड़की में, यार
दिन धीमे से जगा फूस में, खुला, उन्मुक्त, आज़ाद
हिल-डुल रहा वह अलसाया-सा, लम्बी नींद के बाद
रचनाकाल : नवम्बर 1920
इस कविता के बारे में दो शब्द :
जिस तरह भारतीय मिथक परम्परा में महाभारत का युद्ध एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, वैसे ही यूनानी मिथक परम्परा में अख़ेई और ट्रॉय के बीच युद्ध का प्रमुख स्थान है। वास्तव में मंदेलश्ताम ने यहाँ इस युद्ध के मिथक को माध्यम बनाकर रूस की तत्कालीन स्थिति का वर्णन किया है। मंदेलश्ताम ने समाजवादी क्रान्ति की समर्थक लाल सेनाओं को ’अख़ेई सेना’ और पुराने ज़ारकालीन रूस को ’ट्रॉय’ के मिथकों में बाँधा है। प्रियाम ट्रॉय का अन्तिम सम्राट था, जिसके पचास बच्चे थे, जिनमें से बारह पुत्रियाँ थीं। रूस के अन्तिम ज़ार निकलाय द्वितीय के भी पाँच बच्चे थे, जिनमें से चार पुत्रियाँ थीं। यूनानी भाषा में काष्ठ-प्राचीरों वाले चौकोर किलों को अक्रोपोल कहा जाता है। अख़ेई और ट्रॉय के बीच हुए युद्ध में अख़ेई की विजय हुई थी। विजेताओं ने ट्रॉय को रौंद डाला था और ट्रॉय के सम्राट प्रियाम व उसके सभी बेटे मारे गए थे॥ प्रियाम की कुछ बेटियाँ मारी गई थीं और कुछ को विजेताओं ने अपनी लौण्डी बना लिया था। जबकि समाजवादी क्रान्ति के बाद लेनिन ने रूस के ज़ार निकलाय द्वितीय के पूरे परिवार को ही गोली मरवा दी थी। नई सत्ता के कोप से ख़ुद को बचाने के लिए कव्ता की अन्तिम चार पंक्तियों को मदेलश्ताम ने कुछ इस तरह से लिखा था कि यह कविता समाजवादी क्रान्ति के समर्थन में लिखी गई लगती थी, जबकि यहा~म भी मन्देलश्ताम ने यही बताया था कि ज़ारकालीन रूस के जो महत्त्वपूर्ण बुद्धिजीवी शेष बचे रह गए हैं, नई सत्ता कैसे उन्हें भी धीरे-धीरे ख़त्म कर रही है।