भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाय-हाय रै जमींदारा / दयाचंद मायना
Kavita Kosh से
हाय-हाय रै जमींदारा, मेरा गात चीर दिया सारा ईख तेरे पात्तां नै
तुमसे ज्यादा हम चिरगे, गोरी देख म्हारे हाथां नै
कदे धूप कदे छां आज्या, हाय जान मरण के म्हां आज्या
कदे झाड़ा मैं पां आज्या, दे फोड़ कती लातां नै
जूड़ा हलाकै जहरी छिड़गे, मुंह पै कई तत्तैये लड़गे
बीर मर्द भीतर नै बड़गे, बचा-बचा गातां नै
किस्मत आळा हरफ दीखग्या, खतरा चारों तरफ दीखग्या
एक लटकता का सर्प दीखग्या, बचा लिया दाता नै
सुर गैल सरस्वती वर दे सै, अकल तै मेहनत कर दे सै
‘दयाचंद’ छंद धर दे सै, चौपड़-चौपड़ बातां नै