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हाय वो दिन भी थे कैसे रंग के / अनु जसरोटिया

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हाय वो दिन भी थे कैसे रंग के
जिन दिनों लगते थे मेले रंग के

डाल दो दामन में मेरे फूल कुछ
लाल-पीले हलके नीले रंग के

आ के वो बैठे थे इक दिन रू-ब-रू
ज़िन्दगी ने गीत गाये रंग के

हैं ख़ु़दा के फ़़ज़़्ल से इस शह्र में
लोग उजले मन के उजले रंग के

ख़ैर अब कच्चे मकानों की नहंीं
छा रहे हैं अब्र काले रंग के

गा रहा है गीत ख़्ु़ाशियों के जहां
चार जानिब हैं बसेरे रंग के

उस की चुनरी में जड़े हैं आजकल
टिमटिमाते तारे कितने रंग के

शह्र को जाते हो तो ये सुन रखो
ले के आना गहने पीले रंग के

छंट ही जाएंगे किसी दिन ऐ ‘अनु’
ग़म के बादल गहरे काले रंग के