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हिज्र का दर्द निगाहों से बताने आये / रंजना वर्मा

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हिज्र का दर्द निगाहों से बताने आये
उनको देखा तो लगा मीत पुराने आये

रोज़ ही दर्द के तूफान उठा करते हैं
दोस्त अहबाब मेरा दर्द बंटाने आये

थे जो हो के जुदा सँग ले गये नींदें मेरी
मेरी आँखों मे नये ख्वाब सजाने आये

तीरगी बढ़ रही रातें बहुत अँधेरी हैं
एक उम्मीद की फिर शम्मा जलाने आये

थे किया करते जो बातें चमन के फूलों की
ओस की बूंद दिखा मुझ को रुलाने आये

थे समझते कि जमाना है जश्न का जरिया
ठोकरें खायीं तो फिर होश ठिकाने आये

युद्ध करने से हिचकिचाने लगा है अर्जुन
कृष्ण बन के कोई गीता को सुनाने आये