भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हिज्र का दर्द निगाहों से बताने आये / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
हिज्र का दर्द निगाहों से बताने आये
उनको देखा तो लगा मीत पुराने आये
रोज़ ही दर्द के तूफान उठा करते हैं
दोस्त अहबाब मेरा दर्द बंटाने आये
थे जो हो के जुदा सँग ले गये नींदें मेरी
मेरी आँखों मे नये ख्वाब सजाने आये
तीरगी बढ़ रही रातें बहुत अँधेरी हैं
एक उम्मीद की फिर शम्मा जलाने आये
थे किया करते जो बातें चमन के फूलों की
ओस की बूंद दिखा मुझ को रुलाने आये
थे समझते कि जमाना है जश्न का जरिया
ठोकरें खायीं तो फिर होश ठिकाने आये
युद्ध करने से हिचकिचाने लगा है अर्जुन
कृष्ण बन के कोई गीता को सुनाने आये