भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हिमगिरि छाइ रहे श्रीसंकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(राग शंकरा-तीन ताल)
हिमगिरि छाइ रहे श्रीसंकर॥
गौरी-सहित गौर-तनु उज्ज्वल, आभूषन भूषित भुजंगवर।
पंच बदन, सुभ नयन पंचदस, जटा-मुकुट सिर, ससि-सुर-धुनि धर॥
परसु त्रिसूल ग्यान-वर-मुद्रा शोभित, चारु चार भुज सुंदर।
भालुचर्म कटि, कंञ्ठ कलित अहि अच्छमाल-अहि, मुंडमाल उर॥
अलंकार मुकुता-मनि मंडित, गौरी महिमामयी बरद कर।
धवल वरन, वाहन सुविराजित धरम स्वयं सुचि वरद-रूपधर