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हिमगिरि में हिम से आच्छादित / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग शिवरञ्जनी-ताल कहरवा)
हिमगिरिमें हिमसे आच्छादित हिमाकार शंकर अविकार।
अमल धवल निज रूप समाहित त्रिगुणातीत विविध आकार॥
जटाजूट युत, भुजन्ग-भूषित, सिरसे बहती सुरसरि धार।
शायित लुक्कयित हिममें हर कर वर हिमातिथ्य स्वीकार॥